प्यारे हमवतनों !
26/11 के मुंबई हमलों की यादें किसी के जेहन से
अभी गयी नहीं होंगी. लेकिन लगभग चार साल पुराने हो चुके इस केस में भारत सरकार ने
अभी तक आशातीत सफलता दर्ज नहीं की है. मिला-जुलाकर अभी भी हम पकिस्तान से ये
कबूल करवा नहीं पाए हैं कि ये साजिश उन्होंने ही रची थी.
खैर चोर तो कभी मानेगा नहीं कि मैंने चोरी की
है, ठीक यही हालत पाकिस्तान की है. एक समय तो रहमान मालिक साहब ने यह भी कह दिया
था कि भारत द्वारा दिए गए सबूत ‘साहित्य मात्र’ है. हाफिज सईद को लेकर पाकिस्तानी
हूकूमत बिलकुल आश्वस्त हैं कि उनका नाम फिजूल में खराब किया जा रहा है. बहरहाल १६८
लोगो के हत्यारों में शामिल आमिर अजमल कसाब अपनी जिंदगी के चार खूबसूरत वसंत
भारतीय खुशामद में बिता चुका है. भारतीय खुफिया एजेन्सियों को अभी भी उस से कुछ और
राज उगले जाने की आस है.
चीजें काफी कुछ वैसी
की वैसी चल रही थी, कसाब जी रहा था, पाकिस्तान झुठला रहा था और मीडिया-जगत नयी
कहानिया गढ़ता जा रहा था और तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग अपने संस्करणों की दुहाई दे
रहा था. लेकिन हालिया उलटफेरों के बाद सब कुछ बदल गया है. सऊदी अरब में अबू जिंदाल
उर्फ जबीऊद्दीन अंसारी की गिरफ़्तारी और दिल्ही पुलिस द्वारा उसके प्रत्यर्पण के
बाद सारी स्थितियां बदल चुकी है.
देश से जुड़े मुद्दों के बजाय लेटेस्ट
बोलीवुड फिल्मों पर ज्यादा ध्यान रखने वाले मेरे कुछ दोस्तों को मैं बता दूँ कि
अंसारी की गिरफ़्तारी के बाद उससे हुयी पूछताछ में भारतीय एजेंसियों ने मुंबई हमलों
से जुड़े सारे तार सुलझा लिए हैं. अंसारी ने ये कबूला कि:
१. आई. एस. आई. के दो
मेजर (समीर अली और इकबाल) कराची में बनाये गए अस्थायी कंट्रोल रूम से सारे निर्देश
दे रहे थे.
२. हाफिज सईद के साथ
साथ खुद वो भी कंट्रोल रूम से उनसे बातें कर रहा था.
३. डेविड कोलमन हेडली
ने सिद्धिविनायक मंदिर (मुंबई) से हिंदुओं द्वारा पहना जाने वाला पवित्र लाल-धागा
(रक्षा सूत्र ) २०-२० रूपये में सभी आतंकियों के लिए ख़रीदा और पहनाया.
४. सभी आतंकियों को
‘अरूणोदय कालेज, हैदराबाद’ के स्टूडेंट्स के फर्जी पहचान-पत्र दिए गए. उन्हें
हिंदू नाम दिया गया. जैसे- अजमल कसाब को ‘समीर चौधरी’, इस्माइल खान को ‘नरेश
वर्मा’.
५. लश्कर ने फर्जी
संचालक ‘खड्ग सिंह’ के नाम से यू.एस. की फर्म से ‘इन्टरनेट कालिंग सर्विसेस’
प्राप्त की.
६. खुद उसने ही कसाब
सहित बाकी आतंकियों को भारतीयों जैसी हिदी सिखाई. ‘प्रशासन’ और ‘नमस्ते’ जैसे
शब्दों का प्रयोग भी किया गया.
७. अबू जिंदल,
जबीउद्दीन दोनों नाम उसी के हैं. और मुंबई हमलों के बाद सउदी भेजने के लिए
‘पाकिस्तानी दस्तावेजों’ को आई. एस. आई. ने ही उपलब्ध कराया.
८. लश्कर के कहने पर वो
सउदी में भारतीय कामगारों में से लश्कर के लिए योग्य लोगो की भर्ती करने गया था.
९. आतंकियों को हिंदू
पहचान देने के पीछे आई-एस. आई. का मकसद भारत में मजहबी हिंसा को बढ़ावा दे कर नयी
राजनीतिक अव्यवस्था उत्पन्न करना था.
उपरोक्त सभी बयान अंसारी
ने दिल्ही पुलिस की स्पेशल सेल और सी.बी.आई. की पूछताछ के दौरान दिए. लोगो के लिए
और खासकर पाकिस्तान के लिए ये विश्वास करना मुश्किल है कि पाकिस्तान का बरसों
पुराना दोस्त सउदी अरब आखिर भारतीय एजेंसियों को कैसे सहयोग कर सकता है. वो भी तब
जब ‘आतंक के विरूद्ध चल रहे तथाकथित विश्व-स्तरीय युद्ध’ में पाकिस्तान की छवि दाव
पर लगी हो. पर पाकिस्तान ये भूल गया कि किंग अब्दुल्लाह ‘इस्लाम’ और ‘जिहाद’ के
सही मायनों से वास्ता रखते हैं और उनकी नजर में कमीने भाई से ज्यादा अच्छा ईमानदार
पड़ोसी है.
रही बात
पाकिस्तान की तो कसाब, राना, और हेडली के बाद अब अंसारी के बयानों को भी बेशर्मी
के साथ झुठलाना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है.
....खैर ये तो था पहला पक्ष जिसे दुनिया
देख रही है, मैं बात करना चाहता हूँ दूसरे पक्ष की जब मुंबई हमलों के ठीक बाद कई
स्वनाम-धन्य भारतीय राजनीतिज्ञ और अन्य महत्वपूर्ण हस्तियों ने अपने –अपने आकलन
देने में और देश का रूख दूसरी ओर खींचने में जरा भी शर्म नहीं दिखाई. मैं बात कर
रहा हूँ देशी जेम्सबोंड दिग्विजय सिंह की. जिन्होंने ‘भगवा आतंकवाद’ की तरफ इशारा
किया और ये तक कह डाला कि मरने से पहले शहीद हेमंत करकरे ने उनसे हिंदू आतंकियों
से खतरे की बात की थी. जनाब ने ‘आर.एस.एस.’ के शामिल होने की भी आशंका व्यक्त कर
दी. कमोबेश पूर्व मंत्री ए. आर. अंतुले ने भी ये ही कहा और मीडिया भी उन्हें
तवज्जो देने लगी.
एक
सम्मानित उर्दू दैनिक के संपादक ने तो ‘आर. एस. एस.’ का हाथ होने पर किताब भी लिख
डाली जिसका विमोचन स्वयं दिग्विजय सिंह ने किया. संपादक महोदय ने तो ये भी लिख
डाला कि सी.एस.टी. पर गोलीबारी करने वाले पुलिस कोंस्टेबल ही थे, और सारा कांड
आर.एस.एस. ने प्रज्ञा साध्वी, कर्नल पुरोहित और असीमानंद पर हो रही कार्यवाही का
बदला लेने के लिए किया था.
उस समय, जब देश को एकजुट होने की जरूरत थी तब
इन कतिपय महानुभावों ने देश को गुमराह करने की कोशिश की. उन्होंने शहीदों लाश पर
भी राजनीति कर डाली और एक पल के लिए हिचके भी नहीं. उन्होने जरा भी नहीं सोचा कि
उनकी बातों का देश की जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा.
मैं अभी तक ये नहीं
समझ पा रहा कि इन्होने ऐसा क्यूँ किया ......... वोट-बैंक की सस्ती राजनीति के लिए
या फिर आई.एस.आई. के मकसद को पूरा करने के लिए.
मेरे इन सवालों का खुद मेरे पास
भी कोई जवाब नहीं हैं. आखिर क्यूँ ‘आर.एस.एस.’ जैसे राष्ट्रवादी संगठनों को भी
साम्प्रदायिक नजरिये से देखा जाता है? क्या वजह है कि मीडिया बिना तथ्यों को जांचे
–परखे हवा देने लगता है ? क्यों हम अवसरवादी राजनीतिज्ञों को हम पर शासन करने का
अवसर दे देते हैं ?
जब तक हम इन सवालों के सही जवाब नहीं ढूंढ
पाते तब तक देश के भविष्य का सही रास्ता तय नहीं हो सकता. हालात ये है कि आज देश
में होने वाली हर घटना को एक नए मजहबी नजरिये से देखा जा रहा है. अब जब सारी बाते
परत-दर-परत खुल कर सामने आ चुकी है ऐसा क्यूँ नहीं हो रहा कि दिग्विजय सिंह देश के
‘हिंदू समुदाय’ से सार्वजानिक रूप से माफ़ी नहीं मांगते. क्यूँ नहीं अज़ीज़ बर्मी
द्वारा लिखी ‘२६/११- आर.एस.एस. की साजिश’ किताब को प्रतिबंधित कर दिया जाता और
सुब्रमण्यम स्वामी की तरह उनके खिलाफ भी एक केस चला दिया जाए.
संभवत:
ऐसा कुछ नहीं होने वाला क्यूंकि देश को ‘धर्म-निरपेक्षता’ के नए आयाम और ऊँचे
प्रतिमान देने वाले लोग अभी भी सत्तासीन है.
. निद्रालीन
जनमानस को ‘आनन्द राय’ की शुभकामनाएं.