Tuesday 10 May 2011

Whats happening with us.

प्यारे दोस्तों
      उम्मीद है कि ओसामा बिन लादेन के मरने की न्यूज़ अभी ठंढी नहीं हुयी होगी. आपने देखा की किस तरह अमेरिका ने  दबे पाँव   बिना  पाकिस्तानी सरकार को आगाह किये लादेन को मार गिराया. दुनिया ने मौत को तमाशा अपनी अपनी टीवी पर  बैठ कर देखा. लादेन साहब ने दस साल पहले न्यू यार्क  की दो  बड़ी इमारतों को गिरा डाला और अमेरिका को उसकी औकात दिखा दी. दस साल से खोजते खोजते अब जाकर सफलता मिली अमेरिका को. निश्चित ही अमेरिका का ये कारनामा तारीफ़ के काबिल है, जो सारी दुनिया को ये सन्देश  देता है कि कोई भी अमेरिका की तरफ गलत नजर नहीं डाल सकता. हमने सब कुछ देखा और जी भर के तारीफ़ की अमेरिका की, उसकी ताकत की और उसके गुप्तचर संस्थाओं की . एक ताकतवर और दबंग देश के रूप में अमेरिका ने वो सब किया जो उसने चाहा. फिर चाहे वो इराक पर हमला कर उसे बर्बाद कर देना हो या, सद्दाम को कत्ल कर देना, संयुक्त राष्ट्र संघ को बौना समझना रहा हो, या फिर विकासशील देशों को अपनी दादागिरी दिखाना. 

              क्या एक देश के रूप किसी और देश को ये मनमानी करने की छूट मिलती? शायद  नहीं. आतंकवाद का दंश भारत आज से नहीं, आजादी के बाद से झेल रहा है. और लगभग सभी जानते हैं कि इसकी वजह क्या है और कौन करता है ये सब.  कश्मीर का लगा ये रोग  धीर धीरे पूरे देश को अपनी चपेट में ले चुका है. समय समय पर हमारी कमजोर और नाकारी सरकारों ने इसे अपनी लापरवाही से पनपने दिया. हमारी दोषपूर्ण न्याय प्रणाली ने इसे लगभग मजाक बना कर रख दिया है. उदाहारण के लिए आप कसाब को देख लो, जो दो साल से हमारे पैसों का खाना खा रहा है. ये संभवतः भारत की 'अतिथि देवो भवः'  की युगों पुरानी  परम्परा का ही प्रतीक है. जिस आदमी को पूरी दुनिया ने हाथों में बन्दूक लिए सड़कों पर गोलीबारी करते देखा है उसके लिए जज, वकील, कोर्ट और कानून  की क्या जरुरत  है? जब अमेरिका ने सद्दाम को फांसी देने में देर नहीं की तो हम अफजल गुरु को छह साल से फांसी क्यूँ नहीं दे पा रहे. जब अमेरिका ने लादेन को मारने से पहले मुकदमा नहीं चलाया तो फिर हम कसाब की मेहमान नवाजी क्यूँ कर रहे हैं.  जब हमारी सरकारें अपने मंत्रियों को भ्रष्टाचार करने से रोक नहीं पा रही तो ये अपने देशवासियों की सुरक्षा कैसे कर सकेंगी. जब उम्र रिटायर होने की होती है और पैर कब्र में लटके होते हैं  तब इन्हें देश सँभालने की जिम्मेदारी कौन दे देता है. अरे इस उम्र में तो ठीक  सुनाई भी नहीं देता  फिर ये देश किस आधार पर चलते हैं. अपनी जेबे भरने के अलावा इन्हें और कुछ नहीं सूझता. पक्ष और विपक्ष की लडाई में देश की किरकिरी  हो रही है. संसद में ये देश बेचते हैं. खेलों के नाम पर तो कभी स्पेक्ट्रम  के नाम पर , सड़कें बनाने  के नाम पर तो कभी आम आदमी की तरक्की के नाम पर ये लोग सिर्फ देश की सम्पति से खिलवाड़ करते हैं. आजादी के ६४ साल बाद भी देश वैसा का वैसा ही है. सारे पैसे तो इन्होने अपनी तरक्की में लगा दिए. 
 किसी ने सही ही कहा है कि हर देश अपनी तरक्की का रास्ता खुद ही चुनते हैं. हमारे देश के भाग्याविधाताओ ने शायद ये ही रास्ता चुना है.  विकास दर ८% हो जाये चाहे ८०% हो जाए देश वैसे ही रहना है. तथाकथित रिपोर्टें  कभी २० साल में चीन से आगे निकल जाने की बात करती  हैं तो कभी ५० साल में अमेरिका को पीछे छोड़ देने की हवा बनाती है. ये सब दिन में देखे सपने हैं जो हमें सपनो में ही खुश रहने को कहते हैं. हकीकत तो ये है की जो आज के हालात  हैं वो इस देश की रही सही इज्जत भी बेच देंगे. जनता के १ लाख ८० हजार करोड़ रुपये जो देश में होने चहिये वो स्विट्ज़रलैंड की तरक्की के काम आ रहे हैं. ये पैसे एक दिन में बाहर नहीं गयें,  इन्हें इकट्ठा होने में दशकों लगे हैं, लाखों लोग लुटे गए हैं, करोडो लोगों के साथ धोखा किया  गया है.
   तो सीधी बात ये कि जब अपने ही अपना घर बर्बाद करने में लग जाए तो बाहर वाले तो सेंध लगायेंगे ही. 
मेरे देशवासियों, जागो और देखो आपके देश के साथ क्या हो रहा है. जो सही है उसकी तारीफ़ करो और जो गलत लगता है उसे सही करने कि जिम्मेदारी उठाओ वरना आने वाली नस्लें आपको कोसेंगी कि आपने उन्हें ज़िन्दगी बसर करने के लिया कैसा देश दे दिया है.
                                                                                        धन्यवाद्
 
                                                                        ...................................आनंद 

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