Saturday 12 November 2011

My lost watch and Digvijay Singh.

                              काफी रात हो गयी थी मुझे नींद नहीं आ रही थी. दरअसल मैं परेशान था अपनी चोरी हो गयी घड़ी को लेकर, जो घड़ी मुझे मेरी बीवी ने मुझे हमारी शादी की पहली सालगिरह पर गिफ्ट की थी. चूँकि बेगम साहिबा अगली सुबह मायके से आने वाली थी इसलिए किसी भी भारतीय पति का ऐसे हालात में डरना स्वाभाविक था. गुम हुई घड़ी के बारे में पुलिस को बताने का कोई मतलब तो था नहीं, वैसे ही पुलिस के पास अनसुलझे केसों की भरमार है, एक और केस बढाकर ख्वामखाह पुलिस की क्षमता पर संदेह करना ठीक नहीं लगा, सो मैंने फैसला किया सी. बी. आई. से संपर्क करते हैं. किसी ने कहा कि घड़ी तो मिलेगी नहीं, अलबत्ता घड़ी के चक्कर में राष्ट्रीय महत्व के दूसरे केसों की जांच धीमी पड़ जायेगी. एक घड़ी के लिए देश कि सुरक्षा से खिलवाड वैसे भी मुझे सही नहीं लगा. सोचा जेम्स बोंड से बात करता हूँ, ..........एकाएक दिमाग में विचार आया कि अब बस एक ही शख्स है पूरे भारत में जो घड़ी के बारे में सही सूचना दे सकता है, और वो हैं............................... जनाब दिग्विजय सिंह जी.
अजी अब करना क्या था हमने उनका फोन नंबर लिया, फोन घुमाया और घुमाते ही साहब लाइन पर मिल गए लेकिन थोड़े मायूस से लगे. हाल चाल पूछा तो पता चला कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग आजकल उनकी बातों को हलके में लेने लगा है. मुझे भी सुनकर बड़ा दुख हुआ कि उन जैसे नेता के साथ मीडिया का ये व्यवहार सही नहीं है. भई, क्या हो गया जो नेता बूढा हो गया है, कुछ दांत टूट गए हैं या फिर अपनी पार्टी के लोग उन्हें सीरियसली नहीं लेते. नेता तो नेता होता है. मैंने उन्हें सांत्वना दी और याद कराया उन्हें उनके गौरवशाली अतीत के बारे में. वो भी फूले नहीं समाये और मुझसे काफी खुश हुए. मुझे लगा बस यही मौका है अपना मौका रखने का और त्वरित परिणाम पाने का. मैंने अपनी व्यथा बताई और मदद की गुहार की. सिंह साहब सोच में पड़ गए. उन्होंने केस की गंभीरता को देखते हुए मुझसे दो दिन का वक्त माँगा. मुझे तो घड़ी चाहिए थी फिर वक्त भी तो पुलिस के वक्त से कम था. और फिर दिग्विजय साहब से ज्यादा विश्वसनीय कौन मिलता भला.
ठीक दो दिन बाद सिंह साहब ने केस सुलझा दिया और बताया
“आर. एस. एस. ने घड़ी चुराकर अन्ना को दे दी है और पुलिस उनसे कुछ उगलवा न ले इसलिए अन्ना ने मौनव्रत रख लिया है.”
मुझे तरस आया अन्ना और आर. एस. एस. पर की सिर्फ एक घड़ी के लिए वो इस हद तक जा सकते है. मामला तूल न पकड़ ले इसलिए मैंने सबकुछ बेगम को बता डाला. बेगम ने मेरे गाल सहलाते हुए मुझसे माफ़ी मांगी और कबूल किया कि जल्दी जल्दी में उन्होंने मेरी घड़ी अपनी अटैची में रख ली थी. मुझे थोड़ी शर्म आई सोचा, बिना कारण सिंह साहब को परेशान करने के लिए माफ़ी मांग लूं. ये सुनते ही बीवी ने मेरे गालों पर दो तमाचे रसीद किये और बोली “कुछ सीखते क्यों नहीं देश की जनता से, अपनी घड़ी तो मिल ही गयी है अब दिग्गी साहब दूसरी दिला रहे हैं तो क्या प्रॉब्लम है. अपनी जुबान मनमोहन की तरह बंद रखो मुझे सोनिया समझो और मैंने कुछ दिनों में घड़ियों की दूकान न खुलवा दी तो देखना.” मरता क्या न करता, बीवी की बात माननी पड़ी. फिर भी दिल न माना, और शाम की नमाज में हम दोनों ने सिंह साहब के दिमाग और तबीयत दोनों के सलामती की दुआ मांग ली. अल्लाह उन्हें जल्दी ठीक करे, देश को उनकी जरूरत है.
                                                                                                        धन्यवाद् !
                                                                                                                         ............ आनंद

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