Thursday 24 November 2011

And slapping continues!!!

प्यारे भारतीयों !
                      मुझे सुन कर जराभी आश्चर्य नहीं हुआ कि माननीय मंत्री जी को जनाब हरविंदर सिंह ने थप्पड़ मारा. आज नहीं तो कल  किसी को तो पड़ना ही था. ये थप्पड़ अकेले मंत्रीजी को नहीं पूरी सरकार और भ्रष्ट राजनीति  के गाल पर  लगा है. अलबत्ता ये बात अलग है कि सारा गुस्सा मंत्रीजी पर ही क्यूँ., तो भईया सीधी बात ये कि नंबर  सबका लगना है अब किसका पहले किसका बाद में ये नहीं पता. सारी नेता कौम ने इस घटना की कड़ी आलोचना की है और इसे 'जनतंत्र पर हमला',  'लोकतंत्र की  हत्या' और जाने क्या- क्या बताया है. ये सब सुनकर डेल्ही में बाबा रामदेव के साथ रात में सोती हुयी भीड़ पर हुआ सरकारी हमला भी याद आ गया मुझे, क्या वो लोकतंत्र की हत्या नहीं थी?  एक थप्पड़ पर पूरा राजनीतिक गलियारा तिलमिला उठा, प्रशांत भूषण  के साथ कोर्ट परिसर में जो हुआ क्या वो जनतंत्र पर हमला नहीं था ?

मंत्रीजी के समर्थन लगभग सभी नेताओं ने कुछ  न कुछ कहा जो ये दिखाता है  कि मुसीबत में सारे भाई-भाई हो जाते हैं और इलेक्शन में पब्लिक को बेवक़ूफ़ बनाने का काम करते हैं. प्रणब दा ने कहा कि " पता नहीं देश किस ओर जा रहा है". श्रीमान से कोई पूछे कि देश को आगे या पीछे ले जाने की नीतियां कौन बनाता है और रास्ते कौन तय करता है. और आज की स्थिति पैदा करने में सबसे ज्यादा योगदान किस वर्ग का है?
दलगत राजनीति का असर देखिये कि बेचारे यशवंत जी को सीधा पब्लिक को भड़काने का आरोप लगा दिया गया. सभी ये भूल गए कि किस वजह से शरद पवार को ही थप्पड़ लगा जबकि मोस्ट डेसेर्विंग लोगों की भरमार है. चलिए मैं बताये देता हूँ. पवार जी देश के सिर्फ कृषि मंत्री ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र के अधिकांश  चीनी मिलों के  मालिक हैं,  कोटन से लेकर उर्वरक उद्योगों में  भी जनाब की तूती बोलती है. एक तरफ जब विदर्भ के किसान आत्महत्या कर रहे थे , पवार जी आई. पी. एल. की पार्टियों में व्यस्त रहते थे, जनाब का सारा ध्यान कृषि को छोड़कर क्रिकेट में लगा रहता  है और लगे भी क्यूँ नहीं जब आई. सी. सी. के अध्यक्ष  का महत्वपूर्ण  पद उनके पास है. उन्हें रबी, खरीफ और जायद की फसलों का ध्यान भले ही न हो पर क्रिकेट के वार्षिक कैलेंडर का पूरा भान रहता है. सत्ता के गलियारों में जनाब का नाम सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों में गिना जाता है. फसलों के समर्थन मूल्य में उतार चढाव  के प्रश्नों से और अनाज के दामों में बढती मंहगाई के प्रश्नों से वो हमेशा बचते ही रहते थे , किसानो की फ़िक्र तो उन्हें कभी रही ही नहीं फिर आम आदमी के बारे में वो क्या सोचते. बेटी को भी राजनीति में लाकर उन्होंने अपना पारिवारिक दायित्व पूरा कर दिया पर बतौर कृषि मंत्री वो अभी तक कुछ कर नहीं कर सके, उल्टा अपने ही देश की चीनी और गेंहू अधिक उत्पादित बताकर पहले ऑस्ट्रेलिया  को निर्यात किया फिर चार महीने बाद ही खाद्यान्नों की कमी बता कर ऑस्ट्रेलिया से अंतर्राष्ट्रीय कीमतों से ढाई गुना अधिक दामो पर खरीद कर भारत वापस लाये. ऐसी  दूरदर्शी नीति पर उन्हें थप्पड़ नहीं तो क्या दिया जाए. फैसला आप खुद  कर सकते हैं.
थप्पड़ खाने के कुछ देर बाद ही जनाब  पवार ने बेशर्मी का परिचय देते हुए कहा कि  "इस घटना को गंभीरता से ना लें ", पर मैं कहता हूँ कि आपने अगर इसे गंभीरता से नहीं लिया तो वो दिन दूर नहीं जब आप लोगों को संसद में घुसकर थप्पड़ रसीद किये जायेंगे. मैं अपने इस लेख के माध्यम से सभी राजनीतिज्ञों से अपील करता हूँ कि वे प्लीज़ इस घटना को गंभीरता से लें (ख़ास तौर पर दिग्विजय साहब क्यूंकि उनका नंबर कभी भी पड़ सकता है. )  वर्ना सोयी जनता जागने के बाद क्या कर देगी कोई नहीं जानता.
अंत में भाई हरविंदर जी के अदम्य साहस को सलाम करते हुए मैं उन्हें 'सरदारों का सरदार ' की उपाधि से नवाजता हूँ. वरना मनमोहन जी को देख कर कभी यकीं नहीं होता था कि   'सरदार' का गुस्सा क्या होता है.
भाई हरविंदर जी ने आम आदमी की आवाज को नेताओं की कनपटी तक पहुँचाया   जो सीधे और शांतिपूर्ण तरीकों से कभी नहीं पंहुच  सकती थी.


                 आम आदमी की गूँज रही आवाज को सलाम !
                                                                                            .......... धन्यवाद !
                                                                                          ............. आनन्द राय

Saturday 19 November 2011

UP and cheap politics: Divide and Rule

        जब मैं बच्चा था तो ज्यादा चीज़ें समझ में नहीं नहीं आती थी, और टेंशन भी कम ही रहती थी , ज्यादा से ज्यादा होम वर्क  की या फिर मम्मी के डांटने की टेंशन. इससे बड़ी टेंशन कब हुयी पता ही नहीं चला. थोड़े और बड़े हुए तो बोर्ड - परीक्षा   की टेंशन और ज्यादा बड़े हुए गर्लफ्रेंड की टेंशन. पर अब जब उम्र २५ की हो गयी है तो देश की चिंता सताने लगी है. ऐसा लगता है कि जो कुछ हो रहा है , ठीक नहीं हो रहा. कुछ लोग राजनीति को देश या राज्य से ज्यादा महत्व  दे रहे हैं. जब भी सुनता हूँ कि महाराष्ट्र में राज ठाकरे के लोगों ने यूपी या बिहार के लोगों को मारा तो लगता है जैसे एक चोट मुझे भी आई है. जब मैंने सुना कि होम मिनिस्टर  ने यूपी और बिहार के लोगों को दिल्ली में बढ़ते रेप और चोरी की घटनाओं का कारण बताया तो दुःख  होता है कि क्या यही दिन देखने बाकी रह गए थे आजादी के साठ साल बाद भी.
    यूपी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं इसलिए सभी पार्टियों ने एक बार फिर से जनता को बेवकूफ बनाना शुरू कर दिया है. एक हद तक सब ठीक लगता है ख़ासतौर से तब तक, जब तक पानी सर के ऊपर  से ना गुजरे. राहुल गाँधी ने भट्टा परसौल गाँव में जाकर कहा " मुझे खुद को भारतीय कहने में शर्म आती है जहाँ किसानों का हक मांगने पर मुझे गिरफ्तार किया जाता है और किसानों को गोली मारी  जाती है " शायद ये  कहते हुए वो भूल गए थे कि वास्तव में गिरफ्तारी क्या होती है. सन २००१ में राहुल गाँधी को यू. एस. ए. के बोस्टन एअरपोर्ट पर ऍफ़.  बी. आई. ने १,६०,००० डोलर के साथ उनकी कोलंबियाई गर्लफ्रेंड समेत  गिरफ्तार किया था. वाजपेयी  जी की मध्यस्थता  के बाद उन्हें छोड़ दिया गया. अपनी इस गिरफ्तारी को छोड़ कर राहुल जी सांकेतिक गिरफ्तारी को हवा देने में नहीं चूके. कमोबेश यही  हाल भाजपा का भी है जो अंतर्कलह को मिटाने से पहले ही यूपी का किला फतह करना चाहती है. समाजवादी पार्टी अपने शासनकाल में हुए 'ला एंड आर्डर' के बुरे हाल को भूल कर मायावती पर ऊंगली उठा रही है.  बात यहीं  तक होती तो ठीक थी,  मायावतीजी जिन्हें अपने शासन के चार सालों तक विकास  के  लिए जरूरी चीज़ों का पता नहीं चला अब कहती हैं कि यूपी के विकास के लिए इसके  चार टुकड़े करना जरूरी है. कोर्ट के फैसलों की अनदेखी करते हुए जिसने लगातार पार्कों के नाम पर पैसे पानी की तरह बहाए, जबकि पूर्वी यूपी में तक़रीबन चार सौ  बच्चे  इन्सेफेलायितिस से जूझते हुए दम तोड़ते रहे. एक तरफ सरकार के सभी  मंत्री कदाचार और भ्रष्टाचार  के आरोपों में घिरते रहे दूसरी तरफ मैडम अपनी ही मूर्तियाँ लगाती रही. पुराने जिलों में ही अभी तक बुनियादी सुविधाओं का विकास नहीं हो पाया था, माननीया ने नए जिलों का सृजन और नामकरण  करना शुरू कर दिया. उनके तुगलकी फैसलों की उनके चाटुकार नौकरशाहों और अवसरवादी राजनीतिज्ञों ने जमकर वाह वाही की . लेकिन अब जो हो रहा है वो ओछी  राजनीति का सबसे घटिया उदाहरण है. एक गौरवशाली इतिहास के स्वामी राज्य का  भविष्य सस्ती राजनीति की भेंट चढ़ने जा रहा है.  मायावती ने शांत पड़ी जनता के हाथ में ऐसा धारदार हथियार थमा दिया है जो देश को अलग-थलग कर देने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा. किसी ने चार राज्यों के गठन का सिद्धांत नहीं दिया फिर मायावती को इसका राग छेड़ने की क्या आन पड़ी. न तो राज्य में एस बात को लेकर कोई बड़ा आन्दोलन हो रहा था और न ही  तेलंगाना जैसी स्थिति थी  फिर इस भूत को जगाने की क्या जरूरत आ पड़ी.  पार्टियों के एक के बाद एक बयानबाजी से शुरू हुयी टकराव की स्थिति कब भयानक रूप ले लेगी, पता भी नहीं चलेगा.
मैं खुद यूपी का होने के नाते इस बात से कहीं से भी सहमत नहीं हूँ कि यूपी का बंटवारा जरूरी है. किसी राज्य विशेष के विकास के लिए पारदर्शी लोक कल्याणकारी नीतियाँ जरूरी होती है, संसाधनों के सही इस्तेमाल और वितरण की सही प्रणाली जरूरी होती है,  साथ ही शासक वर्ग का नैतिक रूप से शुद्ध होना और नागरिक हितों को पार्टी  हित से ऊपर मानना जरूरी होता है, राज्य स्वतः विकास की राह पर दौड़ने लगेगा. सिर्फ विकास के नाम पर छोट छोटे टुकड़े कर देना समस्या का समाधान नहीं है.
विकास से अलग हट कर बात सोची जाए तो यूपी के पास लोकसभा की ८० सीटें हैं जो दिल्ली की सत्ता का रास्ता तय करती हैं और यूपी को विशेष सम्मान दिलाती हैं. आम चुनावों में पूरे देश की नजर यूपी पर होती है,  
देश में यूपी का अपनी आबादी, अपनी विविधता और अपनी क्षेत्रीय विशालता के कारण अद्वितीय सम्मान है जो चार टुकड़े हो जाने के बाद छिन्न-भिन्न हो जायेगा. मायावती जी की राज्य विभाजन की नीति यूपी के गरिमामयी अतीत को गुजरे जमाने की कहानियाँ बना देगा. आज अगर यूपी को तोड़कर पूर्वांचल, हरित प्रदेश, अवध प्रदेश जैसे चार नए राज्यों का गठन हो जाता हैं तो कल तेलंगाना, बोडोलैंड, खालिस्तान की मांग भी उठेगी जिसे दबाना सरकार के बस की बात नहीं होगी.  एक भारतीय होने के नाते मैं देश के और टुकड़े होते नहीं देख सकता.
यद्यपि नए राज्यों का गठन लम्बी प्रक्रियाओं के बाद होता है लेकिन इस दौरान लोगों में अलगाव को लेकर बढ़ती हुयी वैमनस्यता आम आदमी को चैन से जीने नहीं देगी और अवसरवादी राजनीतिग्य अपनी रोटियाँ सेंकते रहेंगे. एक भारतीय होने के नाते मैं ऐसे किसी भी विचार या प्रस्ताव की खिलाफत करता हूँ जो देश को तोड़ने की बात करता हो और देश की जनता का आह्वान करता हूँ कि वो आगे आये और ऐसे नेताओं के चंगुल से देश को आजाद कराए. इन्हे इनकी औकात दिखाना ज्यादा जरूरी है.
                                                                ............ धन्यवाद
                                                                                                                    आनन्द राय 

Saturday 12 November 2011

My lost watch and Digvijay Singh.

                              काफी रात हो गयी थी मुझे नींद नहीं आ रही थी. दरअसल मैं परेशान था अपनी चोरी हो गयी घड़ी को लेकर, जो घड़ी मुझे मेरी बीवी ने मुझे हमारी शादी की पहली सालगिरह पर गिफ्ट की थी. चूँकि बेगम साहिबा अगली सुबह मायके से आने वाली थी इसलिए किसी भी भारतीय पति का ऐसे हालात में डरना स्वाभाविक था. गुम हुई घड़ी के बारे में पुलिस को बताने का कोई मतलब तो था नहीं, वैसे ही पुलिस के पास अनसुलझे केसों की भरमार है, एक और केस बढाकर ख्वामखाह पुलिस की क्षमता पर संदेह करना ठीक नहीं लगा, सो मैंने फैसला किया सी. बी. आई. से संपर्क करते हैं. किसी ने कहा कि घड़ी तो मिलेगी नहीं, अलबत्ता घड़ी के चक्कर में राष्ट्रीय महत्व के दूसरे केसों की जांच धीमी पड़ जायेगी. एक घड़ी के लिए देश कि सुरक्षा से खिलवाड वैसे भी मुझे सही नहीं लगा. सोचा जेम्स बोंड से बात करता हूँ, ..........एकाएक दिमाग में विचार आया कि अब बस एक ही शख्स है पूरे भारत में जो घड़ी के बारे में सही सूचना दे सकता है, और वो हैं............................... जनाब दिग्विजय सिंह जी.
अजी अब करना क्या था हमने उनका फोन नंबर लिया, फोन घुमाया और घुमाते ही साहब लाइन पर मिल गए लेकिन थोड़े मायूस से लगे. हाल चाल पूछा तो पता चला कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग आजकल उनकी बातों को हलके में लेने लगा है. मुझे भी सुनकर बड़ा दुख हुआ कि उन जैसे नेता के साथ मीडिया का ये व्यवहार सही नहीं है. भई, क्या हो गया जो नेता बूढा हो गया है, कुछ दांत टूट गए हैं या फिर अपनी पार्टी के लोग उन्हें सीरियसली नहीं लेते. नेता तो नेता होता है. मैंने उन्हें सांत्वना दी और याद कराया उन्हें उनके गौरवशाली अतीत के बारे में. वो भी फूले नहीं समाये और मुझसे काफी खुश हुए. मुझे लगा बस यही मौका है अपना मौका रखने का और त्वरित परिणाम पाने का. मैंने अपनी व्यथा बताई और मदद की गुहार की. सिंह साहब सोच में पड़ गए. उन्होंने केस की गंभीरता को देखते हुए मुझसे दो दिन का वक्त माँगा. मुझे तो घड़ी चाहिए थी फिर वक्त भी तो पुलिस के वक्त से कम था. और फिर दिग्विजय साहब से ज्यादा विश्वसनीय कौन मिलता भला.
ठीक दो दिन बाद सिंह साहब ने केस सुलझा दिया और बताया
“आर. एस. एस. ने घड़ी चुराकर अन्ना को दे दी है और पुलिस उनसे कुछ उगलवा न ले इसलिए अन्ना ने मौनव्रत रख लिया है.”
मुझे तरस आया अन्ना और आर. एस. एस. पर की सिर्फ एक घड़ी के लिए वो इस हद तक जा सकते है. मामला तूल न पकड़ ले इसलिए मैंने सबकुछ बेगम को बता डाला. बेगम ने मेरे गाल सहलाते हुए मुझसे माफ़ी मांगी और कबूल किया कि जल्दी जल्दी में उन्होंने मेरी घड़ी अपनी अटैची में रख ली थी. मुझे थोड़ी शर्म आई सोचा, बिना कारण सिंह साहब को परेशान करने के लिए माफ़ी मांग लूं. ये सुनते ही बीवी ने मेरे गालों पर दो तमाचे रसीद किये और बोली “कुछ सीखते क्यों नहीं देश की जनता से, अपनी घड़ी तो मिल ही गयी है अब दिग्गी साहब दूसरी दिला रहे हैं तो क्या प्रॉब्लम है. अपनी जुबान मनमोहन की तरह बंद रखो मुझे सोनिया समझो और मैंने कुछ दिनों में घड़ियों की दूकान न खुलवा दी तो देखना.” मरता क्या न करता, बीवी की बात माननी पड़ी. फिर भी दिल न माना, और शाम की नमाज में हम दोनों ने सिंह साहब के दिमाग और तबीयत दोनों के सलामती की दुआ मांग ली. अल्लाह उन्हें जल्दी ठीक करे, देश को उनकी जरूरत है.
                                                                                                        धन्यवाद् !
                                                                                                                         ............ आनंद

Tuesday 10 May 2011

Whats happening with us.

प्यारे दोस्तों
      उम्मीद है कि ओसामा बिन लादेन के मरने की न्यूज़ अभी ठंढी नहीं हुयी होगी. आपने देखा की किस तरह अमेरिका ने  दबे पाँव   बिना  पाकिस्तानी सरकार को आगाह किये लादेन को मार गिराया. दुनिया ने मौत को तमाशा अपनी अपनी टीवी पर  बैठ कर देखा. लादेन साहब ने दस साल पहले न्यू यार्क  की दो  बड़ी इमारतों को गिरा डाला और अमेरिका को उसकी औकात दिखा दी. दस साल से खोजते खोजते अब जाकर सफलता मिली अमेरिका को. निश्चित ही अमेरिका का ये कारनामा तारीफ़ के काबिल है, जो सारी दुनिया को ये सन्देश  देता है कि कोई भी अमेरिका की तरफ गलत नजर नहीं डाल सकता. हमने सब कुछ देखा और जी भर के तारीफ़ की अमेरिका की, उसकी ताकत की और उसके गुप्तचर संस्थाओं की . एक ताकतवर और दबंग देश के रूप में अमेरिका ने वो सब किया जो उसने चाहा. फिर चाहे वो इराक पर हमला कर उसे बर्बाद कर देना हो या, सद्दाम को कत्ल कर देना, संयुक्त राष्ट्र संघ को बौना समझना रहा हो, या फिर विकासशील देशों को अपनी दादागिरी दिखाना. 

              क्या एक देश के रूप किसी और देश को ये मनमानी करने की छूट मिलती? शायद  नहीं. आतंकवाद का दंश भारत आज से नहीं, आजादी के बाद से झेल रहा है. और लगभग सभी जानते हैं कि इसकी वजह क्या है और कौन करता है ये सब.  कश्मीर का लगा ये रोग  धीर धीरे पूरे देश को अपनी चपेट में ले चुका है. समय समय पर हमारी कमजोर और नाकारी सरकारों ने इसे अपनी लापरवाही से पनपने दिया. हमारी दोषपूर्ण न्याय प्रणाली ने इसे लगभग मजाक बना कर रख दिया है. उदाहारण के लिए आप कसाब को देख लो, जो दो साल से हमारे पैसों का खाना खा रहा है. ये संभवतः भारत की 'अतिथि देवो भवः'  की युगों पुरानी  परम्परा का ही प्रतीक है. जिस आदमी को पूरी दुनिया ने हाथों में बन्दूक लिए सड़कों पर गोलीबारी करते देखा है उसके लिए जज, वकील, कोर्ट और कानून  की क्या जरुरत  है? जब अमेरिका ने सद्दाम को फांसी देने में देर नहीं की तो हम अफजल गुरु को छह साल से फांसी क्यूँ नहीं दे पा रहे. जब अमेरिका ने लादेन को मारने से पहले मुकदमा नहीं चलाया तो फिर हम कसाब की मेहमान नवाजी क्यूँ कर रहे हैं.  जब हमारी सरकारें अपने मंत्रियों को भ्रष्टाचार करने से रोक नहीं पा रही तो ये अपने देशवासियों की सुरक्षा कैसे कर सकेंगी. जब उम्र रिटायर होने की होती है और पैर कब्र में लटके होते हैं  तब इन्हें देश सँभालने की जिम्मेदारी कौन दे देता है. अरे इस उम्र में तो ठीक  सुनाई भी नहीं देता  फिर ये देश किस आधार पर चलते हैं. अपनी जेबे भरने के अलावा इन्हें और कुछ नहीं सूझता. पक्ष और विपक्ष की लडाई में देश की किरकिरी  हो रही है. संसद में ये देश बेचते हैं. खेलों के नाम पर तो कभी स्पेक्ट्रम  के नाम पर , सड़कें बनाने  के नाम पर तो कभी आम आदमी की तरक्की के नाम पर ये लोग सिर्फ देश की सम्पति से खिलवाड़ करते हैं. आजादी के ६४ साल बाद भी देश वैसा का वैसा ही है. सारे पैसे तो इन्होने अपनी तरक्की में लगा दिए. 
 किसी ने सही ही कहा है कि हर देश अपनी तरक्की का रास्ता खुद ही चुनते हैं. हमारे देश के भाग्याविधाताओ ने शायद ये ही रास्ता चुना है.  विकास दर ८% हो जाये चाहे ८०% हो जाए देश वैसे ही रहना है. तथाकथित रिपोर्टें  कभी २० साल में चीन से आगे निकल जाने की बात करती  हैं तो कभी ५० साल में अमेरिका को पीछे छोड़ देने की हवा बनाती है. ये सब दिन में देखे सपने हैं जो हमें सपनो में ही खुश रहने को कहते हैं. हकीकत तो ये है की जो आज के हालात  हैं वो इस देश की रही सही इज्जत भी बेच देंगे. जनता के १ लाख ८० हजार करोड़ रुपये जो देश में होने चहिये वो स्विट्ज़रलैंड की तरक्की के काम आ रहे हैं. ये पैसे एक दिन में बाहर नहीं गयें,  इन्हें इकट्ठा होने में दशकों लगे हैं, लाखों लोग लुटे गए हैं, करोडो लोगों के साथ धोखा किया  गया है.
   तो सीधी बात ये कि जब अपने ही अपना घर बर्बाद करने में लग जाए तो बाहर वाले तो सेंध लगायेंगे ही. 
मेरे देशवासियों, जागो और देखो आपके देश के साथ क्या हो रहा है. जो सही है उसकी तारीफ़ करो और जो गलत लगता है उसे सही करने कि जिम्मेदारी उठाओ वरना आने वाली नस्लें आपको कोसेंगी कि आपने उन्हें ज़िन्दगी बसर करने के लिया कैसा देश दे दिया है.
                                                                                        धन्यवाद्
 
                                                                        ...................................आनंद 

Being an Indian.

Hi Guys!
            Here I am producing some stuff which I think can inspire you to think seriously about something other than ourselves.

             We live in India, sharing its air, water, land and many more things without taking care of anything other than ourselves. The youth of today is completely strayed. Nobody has time to think how the system works and how the people are using it. We elect and select a Government to rule over us for every 5 years. But we don't bother in what way the nation is being ruled, how the power is being misused and how we are letting everyday passed with closed eyes, deaf ears and dumb tongue without doing anything against it.
   The one thing I am very sure about is that we are not in our sense. Because for the youth of today, level of morality and the standards of living are changed. We feel confident and satisfied when we are done with  shopping in a Mall, or movie in a Multiplex. We run after the branded jeans, shoes, glasses, fancy items, cosmetics and etc. We feel us proud when opposite sex follows us or we get somebody nailed. We find ourselves on cloud 9 after getting a huge package from some MNC. We are supposed to be well settled when we get a job. Is it the real thing to be proud at? Is it the expectation of our country from us? Just participating in a reality show and winning the fucking so-called titles are the achievement? Does the talent mean 'Dance' or 'Singing' only for which 'talent-hunts' are organized? Do we really need this?
   How can we blame the system when we ourselves are corrupt? How can we criticize the politicians, police and administration when public itself is out of sense.
    In simple, I just want to say that we should be serious for a cause. If not for the country, for our self at least. A country can not develop until the citizens are developed. There is no 'Magic Rod' of a Fairy which will turn the system in a day. It will take time to make India shine.
   We need to wake up and monitor the current happenings taking place into the country.In stead of updating the status on social networking sites and asking whereabouts of friends we should think and ask serious questions. Look what the PM is doing, what are the wrong things going on with the Ministers, is Mrs. Gandhi serious in her promises, what the opposition is crying about, how can we solve the problem of Naxalism, is reservation right, what the judiciary is doing, why Kasaab is still alive, how can we bring the black money back, why India is poor even after 60 Years of Independence?
   Think over it and come out with a solution. Revolution doesn't come by sitting on a chair and having a coffee mug in hand. Its our problem and we need to solve this.
                                     Be a proud citizen Guys and make India proud on us!
                                                                                                                                    ............. Anand