Saturday 19 November 2011

UP and cheap politics: Divide and Rule

        जब मैं बच्चा था तो ज्यादा चीज़ें समझ में नहीं नहीं आती थी, और टेंशन भी कम ही रहती थी , ज्यादा से ज्यादा होम वर्क  की या फिर मम्मी के डांटने की टेंशन. इससे बड़ी टेंशन कब हुयी पता ही नहीं चला. थोड़े और बड़े हुए तो बोर्ड - परीक्षा   की टेंशन और ज्यादा बड़े हुए गर्लफ्रेंड की टेंशन. पर अब जब उम्र २५ की हो गयी है तो देश की चिंता सताने लगी है. ऐसा लगता है कि जो कुछ हो रहा है , ठीक नहीं हो रहा. कुछ लोग राजनीति को देश या राज्य से ज्यादा महत्व  दे रहे हैं. जब भी सुनता हूँ कि महाराष्ट्र में राज ठाकरे के लोगों ने यूपी या बिहार के लोगों को मारा तो लगता है जैसे एक चोट मुझे भी आई है. जब मैंने सुना कि होम मिनिस्टर  ने यूपी और बिहार के लोगों को दिल्ली में बढ़ते रेप और चोरी की घटनाओं का कारण बताया तो दुःख  होता है कि क्या यही दिन देखने बाकी रह गए थे आजादी के साठ साल बाद भी.
    यूपी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं इसलिए सभी पार्टियों ने एक बार फिर से जनता को बेवकूफ बनाना शुरू कर दिया है. एक हद तक सब ठीक लगता है ख़ासतौर से तब तक, जब तक पानी सर के ऊपर  से ना गुजरे. राहुल गाँधी ने भट्टा परसौल गाँव में जाकर कहा " मुझे खुद को भारतीय कहने में शर्म आती है जहाँ किसानों का हक मांगने पर मुझे गिरफ्तार किया जाता है और किसानों को गोली मारी  जाती है " शायद ये  कहते हुए वो भूल गए थे कि वास्तव में गिरफ्तारी क्या होती है. सन २००१ में राहुल गाँधी को यू. एस. ए. के बोस्टन एअरपोर्ट पर ऍफ़.  बी. आई. ने १,६०,००० डोलर के साथ उनकी कोलंबियाई गर्लफ्रेंड समेत  गिरफ्तार किया था. वाजपेयी  जी की मध्यस्थता  के बाद उन्हें छोड़ दिया गया. अपनी इस गिरफ्तारी को छोड़ कर राहुल जी सांकेतिक गिरफ्तारी को हवा देने में नहीं चूके. कमोबेश यही  हाल भाजपा का भी है जो अंतर्कलह को मिटाने से पहले ही यूपी का किला फतह करना चाहती है. समाजवादी पार्टी अपने शासनकाल में हुए 'ला एंड आर्डर' के बुरे हाल को भूल कर मायावती पर ऊंगली उठा रही है.  बात यहीं  तक होती तो ठीक थी,  मायावतीजी जिन्हें अपने शासन के चार सालों तक विकास  के  लिए जरूरी चीज़ों का पता नहीं चला अब कहती हैं कि यूपी के विकास के लिए इसके  चार टुकड़े करना जरूरी है. कोर्ट के फैसलों की अनदेखी करते हुए जिसने लगातार पार्कों के नाम पर पैसे पानी की तरह बहाए, जबकि पूर्वी यूपी में तक़रीबन चार सौ  बच्चे  इन्सेफेलायितिस से जूझते हुए दम तोड़ते रहे. एक तरफ सरकार के सभी  मंत्री कदाचार और भ्रष्टाचार  के आरोपों में घिरते रहे दूसरी तरफ मैडम अपनी ही मूर्तियाँ लगाती रही. पुराने जिलों में ही अभी तक बुनियादी सुविधाओं का विकास नहीं हो पाया था, माननीया ने नए जिलों का सृजन और नामकरण  करना शुरू कर दिया. उनके तुगलकी फैसलों की उनके चाटुकार नौकरशाहों और अवसरवादी राजनीतिज्ञों ने जमकर वाह वाही की . लेकिन अब जो हो रहा है वो ओछी  राजनीति का सबसे घटिया उदाहरण है. एक गौरवशाली इतिहास के स्वामी राज्य का  भविष्य सस्ती राजनीति की भेंट चढ़ने जा रहा है.  मायावती ने शांत पड़ी जनता के हाथ में ऐसा धारदार हथियार थमा दिया है जो देश को अलग-थलग कर देने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा. किसी ने चार राज्यों के गठन का सिद्धांत नहीं दिया फिर मायावती को इसका राग छेड़ने की क्या आन पड़ी. न तो राज्य में एस बात को लेकर कोई बड़ा आन्दोलन हो रहा था और न ही  तेलंगाना जैसी स्थिति थी  फिर इस भूत को जगाने की क्या जरूरत आ पड़ी.  पार्टियों के एक के बाद एक बयानबाजी से शुरू हुयी टकराव की स्थिति कब भयानक रूप ले लेगी, पता भी नहीं चलेगा.
मैं खुद यूपी का होने के नाते इस बात से कहीं से भी सहमत नहीं हूँ कि यूपी का बंटवारा जरूरी है. किसी राज्य विशेष के विकास के लिए पारदर्शी लोक कल्याणकारी नीतियाँ जरूरी होती है, संसाधनों के सही इस्तेमाल और वितरण की सही प्रणाली जरूरी होती है,  साथ ही शासक वर्ग का नैतिक रूप से शुद्ध होना और नागरिक हितों को पार्टी  हित से ऊपर मानना जरूरी होता है, राज्य स्वतः विकास की राह पर दौड़ने लगेगा. सिर्फ विकास के नाम पर छोट छोटे टुकड़े कर देना समस्या का समाधान नहीं है.
विकास से अलग हट कर बात सोची जाए तो यूपी के पास लोकसभा की ८० सीटें हैं जो दिल्ली की सत्ता का रास्ता तय करती हैं और यूपी को विशेष सम्मान दिलाती हैं. आम चुनावों में पूरे देश की नजर यूपी पर होती है,  
देश में यूपी का अपनी आबादी, अपनी विविधता और अपनी क्षेत्रीय विशालता के कारण अद्वितीय सम्मान है जो चार टुकड़े हो जाने के बाद छिन्न-भिन्न हो जायेगा. मायावती जी की राज्य विभाजन की नीति यूपी के गरिमामयी अतीत को गुजरे जमाने की कहानियाँ बना देगा. आज अगर यूपी को तोड़कर पूर्वांचल, हरित प्रदेश, अवध प्रदेश जैसे चार नए राज्यों का गठन हो जाता हैं तो कल तेलंगाना, बोडोलैंड, खालिस्तान की मांग भी उठेगी जिसे दबाना सरकार के बस की बात नहीं होगी.  एक भारतीय होने के नाते मैं देश के और टुकड़े होते नहीं देख सकता.
यद्यपि नए राज्यों का गठन लम्बी प्रक्रियाओं के बाद होता है लेकिन इस दौरान लोगों में अलगाव को लेकर बढ़ती हुयी वैमनस्यता आम आदमी को चैन से जीने नहीं देगी और अवसरवादी राजनीतिग्य अपनी रोटियाँ सेंकते रहेंगे. एक भारतीय होने के नाते मैं ऐसे किसी भी विचार या प्रस्ताव की खिलाफत करता हूँ जो देश को तोड़ने की बात करता हो और देश की जनता का आह्वान करता हूँ कि वो आगे आये और ऐसे नेताओं के चंगुल से देश को आजाद कराए. इन्हे इनकी औकात दिखाना ज्यादा जरूरी है.
                                                                ............ धन्यवाद
                                                                                                                    आनन्द राय 

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