Thursday 24 November 2011

And slapping continues!!!

प्यारे भारतीयों !
                      मुझे सुन कर जराभी आश्चर्य नहीं हुआ कि माननीय मंत्री जी को जनाब हरविंदर सिंह ने थप्पड़ मारा. आज नहीं तो कल  किसी को तो पड़ना ही था. ये थप्पड़ अकेले मंत्रीजी को नहीं पूरी सरकार और भ्रष्ट राजनीति  के गाल पर  लगा है. अलबत्ता ये बात अलग है कि सारा गुस्सा मंत्रीजी पर ही क्यूँ., तो भईया सीधी बात ये कि नंबर  सबका लगना है अब किसका पहले किसका बाद में ये नहीं पता. सारी नेता कौम ने इस घटना की कड़ी आलोचना की है और इसे 'जनतंत्र पर हमला',  'लोकतंत्र की  हत्या' और जाने क्या- क्या बताया है. ये सब सुनकर डेल्ही में बाबा रामदेव के साथ रात में सोती हुयी भीड़ पर हुआ सरकारी हमला भी याद आ गया मुझे, क्या वो लोकतंत्र की हत्या नहीं थी?  एक थप्पड़ पर पूरा राजनीतिक गलियारा तिलमिला उठा, प्रशांत भूषण  के साथ कोर्ट परिसर में जो हुआ क्या वो जनतंत्र पर हमला नहीं था ?

मंत्रीजी के समर्थन लगभग सभी नेताओं ने कुछ  न कुछ कहा जो ये दिखाता है  कि मुसीबत में सारे भाई-भाई हो जाते हैं और इलेक्शन में पब्लिक को बेवक़ूफ़ बनाने का काम करते हैं. प्रणब दा ने कहा कि " पता नहीं देश किस ओर जा रहा है". श्रीमान से कोई पूछे कि देश को आगे या पीछे ले जाने की नीतियां कौन बनाता है और रास्ते कौन तय करता है. और आज की स्थिति पैदा करने में सबसे ज्यादा योगदान किस वर्ग का है?
दलगत राजनीति का असर देखिये कि बेचारे यशवंत जी को सीधा पब्लिक को भड़काने का आरोप लगा दिया गया. सभी ये भूल गए कि किस वजह से शरद पवार को ही थप्पड़ लगा जबकि मोस्ट डेसेर्विंग लोगों की भरमार है. चलिए मैं बताये देता हूँ. पवार जी देश के सिर्फ कृषि मंत्री ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र के अधिकांश  चीनी मिलों के  मालिक हैं,  कोटन से लेकर उर्वरक उद्योगों में  भी जनाब की तूती बोलती है. एक तरफ जब विदर्भ के किसान आत्महत्या कर रहे थे , पवार जी आई. पी. एल. की पार्टियों में व्यस्त रहते थे, जनाब का सारा ध्यान कृषि को छोड़कर क्रिकेट में लगा रहता  है और लगे भी क्यूँ नहीं जब आई. सी. सी. के अध्यक्ष  का महत्वपूर्ण  पद उनके पास है. उन्हें रबी, खरीफ और जायद की फसलों का ध्यान भले ही न हो पर क्रिकेट के वार्षिक कैलेंडर का पूरा भान रहता है. सत्ता के गलियारों में जनाब का नाम सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों में गिना जाता है. फसलों के समर्थन मूल्य में उतार चढाव  के प्रश्नों से और अनाज के दामों में बढती मंहगाई के प्रश्नों से वो हमेशा बचते ही रहते थे , किसानो की फ़िक्र तो उन्हें कभी रही ही नहीं फिर आम आदमी के बारे में वो क्या सोचते. बेटी को भी राजनीति में लाकर उन्होंने अपना पारिवारिक दायित्व पूरा कर दिया पर बतौर कृषि मंत्री वो अभी तक कुछ कर नहीं कर सके, उल्टा अपने ही देश की चीनी और गेंहू अधिक उत्पादित बताकर पहले ऑस्ट्रेलिया  को निर्यात किया फिर चार महीने बाद ही खाद्यान्नों की कमी बता कर ऑस्ट्रेलिया से अंतर्राष्ट्रीय कीमतों से ढाई गुना अधिक दामो पर खरीद कर भारत वापस लाये. ऐसी  दूरदर्शी नीति पर उन्हें थप्पड़ नहीं तो क्या दिया जाए. फैसला आप खुद  कर सकते हैं.
थप्पड़ खाने के कुछ देर बाद ही जनाब  पवार ने बेशर्मी का परिचय देते हुए कहा कि  "इस घटना को गंभीरता से ना लें ", पर मैं कहता हूँ कि आपने अगर इसे गंभीरता से नहीं लिया तो वो दिन दूर नहीं जब आप लोगों को संसद में घुसकर थप्पड़ रसीद किये जायेंगे. मैं अपने इस लेख के माध्यम से सभी राजनीतिज्ञों से अपील करता हूँ कि वे प्लीज़ इस घटना को गंभीरता से लें (ख़ास तौर पर दिग्विजय साहब क्यूंकि उनका नंबर कभी भी पड़ सकता है. )  वर्ना सोयी जनता जागने के बाद क्या कर देगी कोई नहीं जानता.
अंत में भाई हरविंदर जी के अदम्य साहस को सलाम करते हुए मैं उन्हें 'सरदारों का सरदार ' की उपाधि से नवाजता हूँ. वरना मनमोहन जी को देख कर कभी यकीं नहीं होता था कि   'सरदार' का गुस्सा क्या होता है.
भाई हरविंदर जी ने आम आदमी की आवाज को नेताओं की कनपटी तक पहुँचाया   जो सीधे और शांतिपूर्ण तरीकों से कभी नहीं पंहुच  सकती थी.


                 आम आदमी की गूँज रही आवाज को सलाम !
                                                                                            .......... धन्यवाद !
                                                                                          ............. आनन्द राय

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